

गाँव छोड़ शहर आए कई वर्ष हो गए
एक धुंधली सी याद आज भी
मेरे ज़हन में रह गई है कहीं
बचपन में जब भी
माँ कपड़े या बर्तन धोने बाड़ी में जाती
मैं जल्दी से रसोई घर में घुस जाता
कढ़ाई चढ़ा कर चूल्हे पर मैं रोज
उसे जलाने की कोशिश करने लगता था
पर कुछ ही समय में मुझे यकीन हो चला था
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