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अपने जिगर में दम रखता हूँ,
लहज़ा नरम रखता हूँ !!
तूफ़ानों का भी रुख मोड़ दूँ,
मैं वो अपने अंदर हुनर रखता हूँ !!
मरा नहीं हूँ, अभी ज़िन्दा हूँ मैं,
आसमां में उड़ता परिंदा हूँ मैं !!
किसी के जैसा नहीं बनना मुझे,
बहुत ही अलग और चुनिंदा हूँ मैं !!
एक नई उमंग के संग चमचमाता सवेरा होगा,
चंद कुछ किरणों से कँपकपाता अंधेरा होगा !!
रोज़ मंज़िल की तलाश में,
न जाने कहाँ-कहाँ पहुँच जाता हूँ !!
लौटता नहीं कभी खाली हाथ,
थोड़ा ज़ख्म, थोड़ा मलहम साथ ख़रोंच लाता हूँ !!
जज़्बे से अपने जब तू परिचित होगा,
विशाल पर्वत भी तेरे आगे किंचित होगा !!
नाप लिए हैं कुछ और जर्रे बेशक,
पर अभी तो पूरा आसमान बाकी है !!
वो सोचते हैं कि थक गया है परिंदा,
पर अभी तो असली उड़ान बाकी है !!
महज़ कुछ तारीख़े बीत जाने से कैसे मलाल हो गया,
पूरा करने की है चाहत तो अधूरा कैसे ख्याल हो गया !!
…
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करता रह तू कोशिशें,
जरूर कुछ सफल भी होगी !!
ढल गया गर सूरज यहाँ तो
सुबह जरूर कल भी होगी !!
मैं यूँ ही लिखता रहूँगा,
क्योंकि मैं एक लेखक हूँ !