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शायरी
मैंने कहा इन बारिश की बूँदों को
जरा जमकर बरसे प्रियसी की गली में
ऊष्मा से दहकते उनकी गलियों को
अपनी शीतल बूंदों की चादर चढ़ा दे
कि आँगन में उनका नृत्य करना हो
मेरा अबोध भाव से उन्हें देखना हो ।
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अगस्त 17, 2020
1:29 पूर्वाह्न
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Poems
मैं पढ़ता भी हूँ और पढ़ाता भी हूँ,
सत्ता से सवाल करना सिखाता भी हूँ,
तर्कवादी बने के लिए उकसाता भी हूँ,
सत्ता से संघर्ष ही धर्म हैं बतलाता भी हूँ,
इसलिए मैं देशद्रोही कहलाता हूँ !!
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जुलाई 3, 2020
3:25 पूर्वाह्न
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शायरी
मैं नहीं मानता इंसानों द्वारा बनाए,
किसी दकियानूसी रीति रिवाज को,
धर्म के नाम पर विभाजित तेरे
इस समाज को,
ना मैं पत्थर पूजू, ना ही कब्र में दफन इंसान को,
नकारता हूँ किसी सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी
इंसान के होने के अस्तित्व को,
जी हाँ मैं नास्तिक हूँ !!
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जून 21, 2020
7:38 अपराह्न
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