आस, काश, निराश की,
कई कड़िया जुड़ रही है !!
देखो फिर भी आसमां में,
मेरे देश की मिट्टी उड़ रही है !!
©नीवो
Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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सफर का मजा,
उन्होंने ही लिया जो चलते रहे !!
बैठ गए जो थककर,
वो तो बस धूप में जलते रहे !!
शिष्य सफलता सर्वोच्च जहां,
वहां आज भी ज्ञान अपार है !!
पर बैठ गए ठेकेदार जहां जहां,
वहां तो सिर्फ व्यापार है !!
तू है दानव, मैं था मानव,
अब तो मैं तुझसे बड़ा दरिंदा हूँ !!
गुलामी होगी शहर में तेरे,
मैं तो आज़ाद परिंदा हूँ !!
गुज़रा तेरे करीब से जब,
इत्र सा बन मैं महक उठा !!
तोड़े ख्व़ाब तूने इस कदर,
अब तलक टुकड़े बीन रहा !!
ए-ज़िन्दगी थोड़ा तो रहम कर,
रविवार भी मुझसे छीन रहा !!
कहने को हर बंदा खुदा का,
उसको छल-बल कैसे लिखूँ !!
…
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दोस्ती अपनी सच्ची थी,
मैं पानी सा उसमें घुलता गया !!
इश्क़ कच्चे रंग सा था,
पल दो पल में जो धुलता गया !!
उन्हें इश्क़ होता भी तो कैसे,
अपने ना झूठे वादें थे ना झाँसे !!
उन्हें आखिर रोकता भी तो कैसे,
जिस्म के हम ना भूखे थे ना प्यासे !!
खुशी है तो अच्छा बेरंग भी !!
गम है तो फीका हर रंग भी !!