Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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तेज धूप में तड़पते भूखें पेट को,
राह-राह बड़े पेड़ पर ऊँचे लगे खजूर दिखाए !!
ख़जूर तक पहुँच न सके हाथ जिनके,
पाठ उनको भी आत्मनिर्भर का हुजूर सिखाए !!


दूर होकर भी वो कुछ यूँ प्यार जताती है,
प्यास लगे मुझे तो वो बारिश की बूँदे बन जाती है !!


लाख उम्मीद थी जिनसे हमें,
वो फिर लाखों की बस बातें करके चल दिए !!


अँधियारे में उंगली पकड़ कर हमेशा रज़ा देती है,
माथे पर विन्रम स्पर्श से सारे ज़ख्म सुखा देती है !!
नहीं करी कोई हाई स्कूल, स्नातक की पढ़ाई पर,
मेरी माँ अच्छे से मुझको दुनियादारी सिखा देती है !!


चलते-चलते सीधा पथ कब तूर हो गया,
साबूत रह गई रोटी और तन चूर हो गया !!
दिन-रात चल कर तो पहुँच ही जाते मगर,
पता ना चला जन्नत से घर कैसे दूर हो गया !!


सफर इतना लंबा भी ना था,
कि मुसाफ़िर घर को लौट ना पाया !!
भटक गया या तो वो राह अपनी,
या ख़्वाहिशें अधूरी छोड़ ना पाया !!


जश्न की चाह में जब टूटी हसीन नींद,
तो वाकिफ़ हुआ मैं कितना बदनसीब था !!
देख रहा था जो ख़्वाब ना मुक़म्मल हुआ,
और ना असल में मैं मंज़िल के करीब था !!


देखा नहीं अपना भी साया अंधेरे में कभी,
पर देखा है साथ हमेशा एक यार होता है !!
…
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आधे दाम में भी वो,
मजबूरी में पूरे काम कर देता है !!
वो मज़दूर है जनाब, जो,
घर लौटते-लौटते अक्सर शाम कर देता है !!