एक तारा कल टूटा था अम्बर से,
आसमां का रंग पूरा बदल चुका था !!
सोए थे इसी आस में कि होगी नई सुबह,
पर आँखें खुली तो सूरज ढल चुका था !!
Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
My All Posts
रेशमी डोर से बंधी ये ज़िन्दगी मेहमान सी है,
इक चिराग़ बिन सल्तनत पूरी वीरान सी है !!
गर मैं मुस्कुराऊँ खुशी में या अपने गम में कभी,
तो कह दें कोई कि मुस्कान मेरी इरफान सी है !!
घर में जो कैद है
उनकी तो फिर भी
बस एक वक़्त की रात है !!
घर से दूर कार्मिकों की,
और भूख से तड़पते गरीबों की,
इनकी तो पल-पल काली रात है !!
बनना नहीं मुझे महज़ कुछ शब्दों की सुर्ख़ियां,
मुझे तो मुक़म्मल किसी का अखबार बनना है !!
झोपड़ी पड़ी है ख़ाक अंदर से,
बाहर दिखावटी रोगन हो रहा है !!
अजीब सियासी दौर है ‘नीवो’,
यहाँ प्रश्न से ही प्रश्न हो रहा है !!
गुम न हो जाओ चंद किस्सों में कहीं,
असल में तुम मेरी हर बात में हो !!
महसूस होता है हर पल कोई साथ है मेरे,
मानों जैसे लकीरें मेरे हाथ में हो !!
दिन की चकाचौंध इतनी थी कि नज़ारे नज़र न आए,
ढ़लने लगा सूरज यहाँ तो खुद के साए नज़र न आए !!
ज़मीं पर पड़ी तड़प रही थी इंसानियत,
हाथ में लाठी लिए हैवान जश्न मना रहे थे !!
खुद को लपेट कर मूर्खता के लिबास में,
ज्ञान और आचरण को कफ़न पहना रहे थे !!
मेरे करीब ही था वो शख़्स मुझे खूब चाहने वाला,
मैं फ़िज़ूल ही भटक रहा था चाहने वालों की तलाश में !!
तेरी ज़ुल्फें यूँ बिखरी मेरे चेहरे पर,
कि पूरे शहर में बादल उमड़ आए !!
लोग ताकते रह गए अपनी-अपनी छतों पर ,
और ये बारिश की बूँदे मुझे भिगाए !!