

बिमारी का किस्सा क्या शुरू हुआ,
घर में सब अपना-अपना दुःख बताने लगे !!
“कल फिर जाना है दो वक़्त की रोटी कमाने”
सोचकर ये पिता जी अपना ज़ख्म छुपाने लगे !!
बिमारी का किस्सा क्या शुरू हुआ,
घर में सब अपना-अपना दुःख बताने लगे !!
“कल फिर जाना है दो वक़्त की रोटी कमाने”
सोचकर ये पिता जी अपना ज़ख्म छुपाने लगे !!
कुछ लोगों के ‘साथ’ में ही
गज़ब का स्वाद होता है !!
वरना यूँ किसी के चले जाने से
रोटियाँ बे-स्वाद नहीं लगती !!
वाकिफ हूँ दूरी से, इस मजबूरी से,
तुम मेरी जिंदगानी बनकर आना !!
चल सकूं मैं संग तुम्हारे,
तुम एक ऐसी रवानी बनकर आना !!
टूट कर बिखरा जो मैं,
साथ चलने में उनको घाटा नज़र आया !!
बिखरी तो गुलाब की पंखुड़ियां भी थी,
पर उनको तो बस काँटा नज़र आया !!
आस, काश, निराश की,
कई कड़िया जुड़ रही है !!
देखो फिर भी आसमां में,
मेरे देश की मिट्टी उड़ रही है !!
©नीवो
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