क़लम मेरी चली कागज़ पर..
शब्दों की वर्णमाला तुम ही हो।
पिरोया जिसे पंक्तियों में..
उन कविताओं की आत्मा तुम ही हो।
मेरे काव्य का आधार..
हर शब्द का बखान तुम ही हो।
तुम्हीं से भाव का स्वर फूटा..
मेरे प्रेम का विश्वास तुम्हीं हो।
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