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जरूरी हैं
गिरते-गिरते भी चलना जरूरी हैं।
हर क़दम पर संभलना जरूरी हैं।
माना एक गहरा दरिया हैं ज़िन्दगी,
मगर हर हाल में गुजरना जरूरी हैं।
नम आँखों से भी हँसना जरूरी हैं।
मुसीबतों में रोज फंसना जरूरी हैं।
यहाँ दुनिया में कोई ना देगा खैरात,
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भीड़ में कभी दिल बे-चारा ना हो
लफ़्ज़ों का स्वाद गर खारा ना हो,
कोई शख़्स यहाँ प्यार का मारा ना हो !!
मृगतृष्णा सा ना हो गर सहारा कोई,
तो भीड़ में कभी दिल बे-चारा ना हो !!


चूल्हा-माँ और मैं
गाँव छोड़ शहर आए कई वर्ष हो गए
एक धुंधली सी याद आज भी
मेरे ज़हन में रह गई है कहीं
बचपन में जब भी
माँ कपड़े या बर्तन धोने बाड़ी में जाती
मैं जल्दी से रसोई घर में घुस जाता
कढ़ाई चढ़ा कर चूल्हे पर मैं रोज
उसे जलाने की कोशिश करने लगता था
पर कुछ ही समय में मुझे यकीन हो चला था
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ए-दिल औकात में रह
गुलाम हैं तू, गुलामगिरी कर,
ए-दिल औकात में रह, मोहब्बत न कर !!
कमज़ोर हैं टूट जाएगा, बिखर जाएगा, अहंकार ना कर,
ए-दिल औकात में रह, मोहब्बत न कर !!
हैं ग़र फिर भी गुमान तुझे, तो खुद को साबित कर,
ए-दिल औकात में रह, मोहब्बत न कर !!


मौसम पतझड़ का जरूर आता है
लोगों को कभी कुछ खास मिल जाने पर
ना जाने कैसे इतना गुरूर आता है…
अपने शहर में तो वसंत और बरसात के बाद
मौसम पतझड़ का जरूर आता है…