Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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गैरों को दुःख नही इस बात का,
अब तलक क्यों जीत न पाया !!
उनको गम है इस बात का,
अब तलक क्यों हार न पाया !!
दुआ मांग रहा देख कर उसे,
जो तारा अम्बर से टूट रहा !!
वाकिफ न है वो हकीकत से,
साथ उसका भी किसी से छूट रहा !!
बिमारी का किस्सा क्या शुरू हुआ,
घर में सब अपना-अपना दुःख बताने लगे !!
“कल फिर जाना है दो वक़्त की रोटी कमाने”
सोचकर ये पिता जी अपना ज़ख्म छुपाने लगे !!
किरदार बनता हमारा हमारे अच्छे या बुरे काम से !!
वरना ज्ञान में तो बड़ा था रावण प्रभु श्री राम से !!
देखो! शान-ओ-शौकत,
चन्द लकीरों की मोहताज नहीं !!
उसके पास भी सब कुछ है,
जिसके दोनों हाथ नहीं !!
कट जाता पूरा दिन मगर कहाँ जाए जब शाम ढले,
मिले न अगर घर में सुख तो भला कहाँ आराम मिले !!
कलयुग है ये मेरे बंधु,
यहाँ नाम जैसा न काम है !!
मन में छुपा रावण उसके,
भूमिका निभाता जो राम है !!
कुछ लोगों के ‘साथ’ में ही
गज़ब का स्वाद होता है !!
वरना यूँ किसी के चले जाने से
रोटियाँ बे-स्वाद नहीं लगती !!
चेहरा गुलाब सा और हाथों में शूल है,
शख्स भोला-भाला और यही तो भूल है !!