उलझा हुआ कोई धागा सा हूँ,
तू छूकर मुझे रेशम बना दे ना !!
इधर-उधर भटकता जैसे कोई परिंदा सा,
तू पास बुलाकर मरहम लगा दे ना !!
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उस प्यार का मज़ा ही क्या जो दर्द न दे,
ख़ुशी तो बचपन की झूठी जीत में भी मिल जाती थी !!
डूब जाने को पास हमारे भी इक दरिया-ए-मुहब्बत था,
ख़ामख़ा हम ही इश्क़ में किनारो पे सब कुछ गवा बैठे !!
ज़रूरी नहीं मिले विचार तुम्हारे सभी से यहाँ,
तुम्हीं बताओं आसमाँ मिले ज़मीं से कहाँ ?
ज़िन्दगी मझधार है,
हम फ़िर भी जीए जा रहे हैं ।
महज़ तेरी याद से,
ग़म-दर्द सीए जा रहे हैं ।
ज़िन्दगी मझधार है !
तुम्हें मुसर्रत हो मुबारक,
जफ़ा की सौगात में ।
हम तो समंदर पीर का,
मयकदों में पीए जा रहे हैं ।
…
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चाहते हम भी है देना वफ़ा ताउम्र मुहब्बत में तुझको,
पर ये इश्क़ औऱ मुफलिसी कम्बख्त साथ नही रहते !!
उनके सपने, उनके अरमान एक पल में डूब जाते है,
जिनके अपने, जिनके मकान एक पल में डूब जाते है !!
दिन की चकाचौंध इतनी थी कि नज़ारे नज़र न आए,
ढ़लने लगा सूरज यहाँ तो खुद के साए नज़र न आए !!
दुनिया से क्यों रूठे से लगते हों,
अंदर से जनाब टूटे से लगते हों !!
तकदीरें कुछ यूँ भी बदनाम हो गई,
जब तदबीरें सारी नाकाम हो गई !!