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मैं सावन का बादल,
तू नदियां सुहानी !!
मैं एक ऋतु निर्भर,
तू सर्वत्र बहता पानी !!
मैं शोरो से भरा एक मौसम,
और तू लहरो की दीवानी !!
मुझे ले जाती है हवा अपनी ओर,
मगर तूने हवाओं की कहाँ मानी !!
तू मुझ बिन सूख सी जाती है,
और गिरी तुझ बिन अधूरा,
बस इतनी अपनी कहानी है !!
~गिरीश राम आर्य