उलझा हुआ कोई धागा सा हूँ,
तू छूकर मुझे रेशम बना दे ना !!
इधर-उधर भटकता जैसे कोई परिंदा सा,
तू पास बुलाकर मरहम लगा दे ना !!
Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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ज़रूरी नहीं मिले विचार तुम्हारे सभी से यहाँ,
तुम्हीं बताओं आसमाँ मिले ज़मीं से कहाँ ?
सुनाई देते है कई अलफ़ाज़ मगर,
अपनों सी उनमें बात नहीं होती !!
होती नहीं जिस पल मौजूदगी तुम्हारी,
उस पल हसीन मुलाकात नहीं होती !!
नहीं ऐसी कोई ख्वाइश कि बीते कल मिल जाए,
बस दिन ढलने के बाद फ़ुर्सत के दो पल मिल जाए !!
कुछ देर सफ़र में हम क्या रुके,
लोग हाथ छुड़ा कर चलने लगे !!
उनके सपने, उनके अरमान एक पल में डूब जाते है,
जिनके अपने, जिनके मकान एक पल में डूब जाते है !!
दृढ़ निश्चय और निरंतर हरेक प्रयास था,
ज़मीं से आसमां जीतना बेहद खास था !!
लफ़्ज़ों का स्वाद गर खारा ना हो,
कोई शख़्स यहाँ प्यार का मारा ना हो !!
मृगतृष्णा सा ना हो गर सहारा कोई,
तो भीड़ में कभी दिल बे-चारा ना हो !!
लोगों को कभी कुछ खास मिल जाने पर
ना जाने कैसे इतना गुरूर आता है…
अपने शहर में तो वसंत और बरसात के बाद
मौसम पतझड़ का जरूर आता है…
जो हुई खता
चलो! सब गुनाह हम एतराफ़ करते है,
इक धूल है जो गलतफ़हमी की
आओ! इसे भी साफ़ करते है !!