Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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निराशा का ये मंज़र और गम के
काले बादल जल्द छट जाएंगे !!
तू बढ़ता रह मंज़िल की ओर
हर कदम फ़ासले घट जाएंगे !!


संघर्ष की तपिश में तप कर कई खाक हो जाते है,
बेशक़ीमती होते है वही जो डट कर पाक हो जाते है !!


ज़रा सा भी मुझे कुछ हो जाए तो
बड़ा फ़िक्र करती है !!
अपने दोस्तों से भी खुद से ज्यादा
मेरा ज़िक्र करती है !!


दिन ढ़ले जब बात नहीं होती,
सच कहें तब रात नहीं होती !!


कच्ची रोटियों से क्या पेट भरता कभी,
वो तवा वो चूल्हा अगर काला ना होता !!
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चार दिवारी में रहते, चार लोग बेजान है,
शोर होता है फिर भी सब कुछ बड़ा सुनसान है !!
बात कोई करता नहीं सब लड़ने को तैयार है,
कब्र कोई दिखती नहीं पर घर दिखता श्मशान है !!


काँच सी है वो
एकदम पारदर्शी
कोई बनावट नहीं
कोई दिखावट नहीं
विनम्र है इतनी कि
भावुकता में टूट जाती है
नाराज़ होती है अगर
तो खुद से कहीं छूट जाती है…


अगर दुनिया में रंग काला ना होता,
काजल लगा नयन प्याला ना होता !!
लगाती ना काला टीका माँ माथे मेरे,
तो इतना कभी मैं निराला ना होता !!


सफ़ेद झूठ बोले सफ़ेद रंग का पहने कुर्ता,
सफ़ेद कुर्ते की सफ़ेद जेब में काला धन हो रहा है !!
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