प्यार वो रंग है जिस पर कोई रंग चढ़े न दूजा,
प्यार समर्पण, प्यार है पूजा !!
एक दिन कुछ यूं हुआ..
फूल और कांटे की हुई बात,
एक ही डाली पर रहते दोनों साथ !!
फूल ने कहा, “मुझे धोका दिया तुमने ! “,
काँटा बोला, “शायद! गलत समझा तुमने” !!
गुस्से से बोली फूल प्यारी-
“मैं पूरे संसार को महकाती हूँ,”
अनेक घर आँगन सजाती हूँ !!
तुम तो बस दुःख पहुँचाते सबको,
बिन बात के रुलाते उनको !!”
ये सुनकर काँटा बोला-
“सुनो! हाँ मैं दुःख पहुचाता सबको,
क्योंकि! लोग मुझसे अलग कर देते तुमको !!
तुम्हे कोई हाथ लगा न सके,
इसीलिए! दुःख का काँटा चुबाता उनको !!”
काफी दयालु हो तुम,
ओ! फूल प्यारी !!
महकाते महकाते ये संसार-
खुद मुर्झा जाती हो सारी !!
दुःख तुम्हारा मुझसे देखा जाता नहीं,
हो जाती हो जब अलग मुझसे, बिन तुम्हारे रह पाता नहीं !!
हमेशा खिलते हुए देखना चाहता हूँ,
महकाती रहो तुम संसार, बस इतना चाहता हूँ !!
ये जो भीनी भीनी सी खुशबू,
कुछ बूंदे पानी की
जो पंखुडियो से होकर मुझे पर गिरती है !!
ये कठोर से नर्म मुझे करती है !!
इसीलिए
नफरत है उन लोगो से जो मार देते तुम्हे !!
जीते जी एक दूसरे से अलग कर देते हमें !!
पर अफ़सोस है! तुम भी न जान सकी मेरा प्यार,
गलत समझा तुमने, जैसे समझता पूरा संसार !!”
ये सब सुनकर फूल रोने लगी,
“गलत नहीं है काँटा” वो अब समझने लगी !!
तुम्हारे सिवा किसी और ने इतना सोचा नहीं,
प्यार से कांटे को कहने लगी !!
अपनी कोमल पंखुडियो से,
कांटे को स्पर्श किआ !!
दोनों ने मोहब्बत का दर्श किया !!
फिर! फिर क्या !!
फूल काटें के जीवन की बनी महारानी,
यहाँ खत्म हुई कांटे और फूल की प्रेम कहानी !!
~नीवो (नितिन वर्मा)