Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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वो दीवानी गेम ऑफ थ्रोन्स की,
मैं दीवाना कुमार विश्वास का !!
राह बहुत कठीन है अपनी,
कैसे इज़हार करूँ यार एहसास का !!
लगन की आग
सुलगाते सुलगाते !!
जलन की आग कब भड़क उठी
पता ही न चला !!
ये कैसा
समंदर बन कर आए हो तुम
न मेरी कश्ती किनारे पर लगानी है
न मेरी प्यास भुझानी है !!
सुनी जाती है यहाँ सभी की,
बस संसद थोड़ा बेहरा है !!
देश मेरा है लोकतंत्र,
बस एक रंग थोड़ा गहरा है !!
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जज़्बे से अपने जब तू परिचित होगा,
विशाल पर्वत भी तेरे आगे किंचित होगा !!
होती न फिक्र अगर इन्हें भी अपनों की,
ये लहरें भी किनारों पर ठहर जाती !!
जिन मंत्रियों का स्वर्णिम घोंसला बन रहा,
उन्हें क्या फ़िक्र गर वृक्ष खोकला बन रहा !!
महज़ कुछ तारीख़े बीत जाने से कैसे मलाल हो गया,
पूरा करने की है चाहत तो अधूरा कैसे ख्याल हो गया !!
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हो जाएगा सब राख यूँ ही जल कर,
फिर कुछ न बचेगा हमारे देश में !!
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