शिक्षा का, मकान का, दुकान का,
जरूरतों के हिसाब से कर्ज़ हो गया !!
“बस भर दूं अब तो EMI जैसे – तैसे”,
इंसान इसी सोच में खुदगर्ज़ हो गया !!
Author Archive for: NiVo (Nitin Verma)
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तकदीरें कुछ यूँ भी बदनाम हो गई,
जब तदबीरें सारी नाकाम हो गई !!
ज़िन्दगी में मिले लोगों का,
बस इतना सा सार है !!
जिससे मिला मन ‘वो बढ़िया’,
और बाकी सब बेकार है !!
करता रह तू कोशिशें,
जरूर कुछ सफल भी होगी !!
ढल गया गर सूरज यहाँ तो
सुबह जरूर कल भी होगी !!
रिश्तों में लहजे जब गर्माने लगे,
वसंत में भी फूल मुरझाने लगे !!
…
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यह कैसा कानून !
जहाँ ‘ज़ुल्म’बेखौफ हर सीमा लाँघ रहा,
और ‘इन्साफ’ सडको पर भीख माँग रहा !!
एक दफा मिलकर फिर वो ऐसे मिले,
जैसे पानी बनकर अश्क निगाहों में मिले !!
आज़ाद था हर परिंदा मगर,
कुछ बातें यूँ थमी रह गई !!
जैसे बीत गई हो बरसात मगर,
आँखों में कुछ नमी रह गई !!
कब कहा मैंने कि तुम गलत हो,
पर हाँ ! मेरे लिए तुम सबक हो !!
मिले कई दफ़ा पहले भी हम,
पर आज बात थोड़ी अजीब है !!
मृगतृष्णा निकला वो तो बस,
सोचा जो समंदर मेरे करीब है !!