सुनी जाती है यहाँ सभी की,
बस संसद थोड़ा बेहरा है !!
देश मेरा है लोकतंत्र,
बस एक रंग थोड़ा गहरा है !!
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शिक्षा का, मकान का, दुकान का,
जरूरतों के हिसाब से कर्ज़ हो गया !!
“बस भर दूं अब तो EMI जैसे – तैसे”,
इंसान इसी सोच में खुदगर्ज़ हो गया !!
तकदीरें कुछ यूँ भी बदनाम हो गई,
जब तदबीरें सारी नाकाम हो गई !!
यह कैसा कानून !
जहाँ ‘ज़ुल्म’बेखौफ हर सीमा लाँघ रहा,
और ‘इन्साफ’ सडको पर भीख माँग रहा !!
हुक्मरानों के हुक्म पे,
गज़ब का शासन चल रहा !!
दिखती नहीं इन्हें कोई लौं यहाँ,
फिर क्यों मेरा देश जल रहा !!
दुआ मांग रहा देख कर उसे,
जो तारा अम्बर से टूट रहा !!
वाकिफ न है वो हकीकत से,
साथ उसका भी किसी से छूट रहा !!
कट जाता पूरा दिन मगर कहाँ जाए जब शाम ढले,
मिले न अगर घर में सुख तो भला कहाँ आराम मिले !!
कुछ लोगों के ‘साथ’ में ही
गज़ब का स्वाद होता है !!
वरना यूँ किसी के चले जाने से
रोटियाँ बे-स्वाद नहीं लगती !!
चेहरा गुलाब सा और हाथों में शूल है,
शख्स भोला-भाला और यही तो भूल है !!
हम उनके अश्क अपनी पलकों पर रखते रहे,
और वो हर मौड़ पर हमकों परखते रहे !!