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वाकिफ हूँ दूरी से, इस मजबूरी से,
तुम मेरी जिंदगानी बनकर आना !!
चल सकूं मैं संग तुम्हारे,
तुम एक ऐसी रवानी बनकर आना !!
टूट कर बिखरा जो मैं,
साथ चलने में उनको घाटा नज़र आया !!
बिखरी तो गुलाब की पंखुड़ियां भी थी,
पर उनको तो बस काँटा नज़र आया !!
रात – रात भर जिसका फिक्र करता रहा,
वो कमबख्त किसी और का ज़िक्र करता रहा !!
तोड़े ख्व़ाब तूने इस कदर,
अब तलक टुकड़े बीन रहा !!
ए-ज़िन्दगी थोड़ा तो रहम कर,
रविवार भी मुझसे छीन रहा !!
दोस्ती अपनी सच्ची थी,
मैं पानी सा उसमें घुलता गया !!
इश्क़ कच्चे रंग सा था,
पल दो पल में जो धुलता गया !!
उन्हें इश्क़ होता भी तो कैसे,
अपने ना झूठे वादें थे ना झाँसे !!
उन्हें आखिर रोकता भी तो कैसे,
जिस्म के हम ना भूखे थे ना प्यासे !!
चाहा था जिसे, चाहते है जिसे,
कुछ एहसास थे, वो उन्हें याद नहीं !!
बेकार है हम, झूठे है हम,
कुछ तो याद है इन्हें, चलो इतना याद सही !!
वो गिले, वो शिकवे, बेकार का हर किस्सा छोड़ते है !!
चल आज इस दिल का दिल से नया रिश्ता जोड़ते है !!
…
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