हमारे शहर की गलियाँ,
तुम्हारे सफर का हिस्सा थी ?
या फिर भटक गए थे
तुम अपनी राह से !!
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वाकिफ हूँ दूरी से, इस मजबूरी से,
तुम मेरी जिंदगानी बनकर आना !!
चल सकूं मैं संग तुम्हारे,
तुम एक ऐसी रवानी बनकर आना !!
टूट कर बिखरा जो मैं,
साथ चलने में उनको घाटा नज़र आया !!
बिखरी तो गुलाब की पंखुड़ियां भी थी,
पर उनको तो बस काँटा नज़र आया !!
जहां तक मुमकिन है,
तुम्हारे साथ रहूँगा !!
हो न सका तुम्हारी सुबह का सूरज,
तो चाँद-ए-रात रहूँगा !!
आस, काश, निराश की,
कई कड़िया जुड़ रही है !!
देखो फिर भी आसमां में,
मेरे देश की मिट्टी उड़ रही है !!
©नीवो
सफर का मजा,
उन्होंने ही लिया जो चलते रहे !!
बैठ गए जो थककर,
वो तो बस धूप में जलते रहे !!
शिष्य सफलता सर्वोच्च जहां,
वहां आज भी ज्ञान अपार है !!
पर बैठ गए ठेकेदार जहां जहां,
वहां तो सिर्फ व्यापार है !!
तू है दानव, मैं था मानव,
अब तो मैं तुझसे बड़ा दरिंदा हूँ !!
गुलामी होगी शहर में तेरे,
मैं तो आज़ाद परिंदा हूँ !!
तोड़े ख्व़ाब तूने इस कदर,
अब तलक टुकड़े बीन रहा !!
ए-ज़िन्दगी थोड़ा तो रहम कर,
रविवार भी मुझसे छीन रहा !!
दोस्ती अपनी सच्ची थी,
मैं पानी सा उसमें घुलता गया !!
इश्क़ कच्चे रंग सा था,
पल दो पल में जो धुलता गया !!