ले कटोरा हाथ में चल दिया हूँ फूटपाथ पे
अपनी रोजी रोटी की तलाश में
मैं भी पढना लिखना चाहता हूँ साहब
मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूँ साहब
मैं भी खिलौनों से खेलना चाहता हूँ साहब
रुक जाता हूँ देखकर अपने हालात को
क्योंकि साहब मैं अनाथ हूँ।
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सुनो जो गीत गाऊं मैं पढ़ो अखबार हो जाऊँ,
हो सजना औऱ संवरना तो गुले गुलज़ार हो जाऊँ !!
तुम्हारे प्यार में बोलो तो मैं हर हद गुज़र जाऊँ,
रहो जो साथ तुम मेरे तो नित इतवार हो जाऊँ !!
मैंने कहा इन बारिश की बूँदों को
जरा जमकर बरसे प्रियसी की गली में
ऊष्मा से दहकते उनकी गलियों को
अपनी शीतल बूंदों की चादर चढ़ा दे
कि आँगन में उनका नृत्य करना हो
मेरा अबोध भाव से उन्हें देखना हो ।
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दुनिया में इंसान खुद को ऐसे उठाना चाहता है।
हर एक शख्स यहाँ दूसरे को गिराना चाहता है।
भीतर पल रही नफ़रत की आग मन में, “केशव”
लेकिन मीठी बातों से प्यार दिखाना चाहता हैं।