लफ़्ज़ों का स्वाद गर खारा ना हो,
कोई शख़्स यहाँ प्यार का मारा ना हो !!
मृगतृष्णा सा ना हो गर सहारा कोई,
तो भीड़ में कभी दिल बे-चारा ना हो !!
Archive for category: शायरी
गाँव छोड़ शहर आए कई वर्ष हो गए
एक धुंधली सी याद आज भी
मेरे ज़हन में रह गई है कहीं
बचपन में जब भी
माँ कपड़े या बर्तन धोने बाड़ी में जाती
मैं जल्दी से रसोई घर में घुस जाता
कढ़ाई चढ़ा कर चूल्हे पर मैं रोज
उसे जलाने की कोशिश करने लगता था
पर कुछ ही समय में मुझे यकीन हो चला था
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गुलाम हैं तू, गुलामगिरी कर,
ए-दिल औकात में रह, मोहब्बत न कर !!
कमज़ोर हैं टूट जाएगा, बिखर जाएगा, अहंकार ना कर,
ए-दिल औकात में रह, मोहब्बत न कर !!
हैं ग़र फिर भी गुमान तुझे, तो खुद को साबित कर,
ए-दिल औकात में रह, मोहब्बत न कर !!
लोगों को कभी कुछ खास मिल जाने पर
ना जाने कैसे इतना गुरूर आता है…
अपने शहर में तो वसंत और बरसात के बाद
मौसम पतझड़ का जरूर आता है…
सरहद पर तो हम दुश्मन से निपट ही लेंगे यारो,
पहले घर के गद्दारों का सफाया हो तो बात बने।
करते हैं जो चुगली अपने ही देश की बाज़ार में,
इन्हें बाज़ार से बाहर निकाला जाए तो बात बने।
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जो हुई खता
चलो! सब गुनाह हम एतराफ़ करते है,
इक धूल है जो गलतफ़हमी की
आओ! इसे भी साफ़ करते है !!
सपनों को अपने तुम मन में छुपा लेती हो,
मेरी एक मुस्कान देख ख़ुशी पा लेती हो,
हर ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा लेती हो,
माँ तुम कितनी प्यारी हो सब सँवार देती हो!
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राम को रहीम से और
रहीम को राम से
शिकायत है।
होनी भी चाहिए क्योंकि
ये दोनों बरसों-बरस के
साथी रहे हैं।
ऐसे साथी जिनको एक-दूसरे से
अलग कर पाना मुश्क़िल है।
उतना ही मुश्क़िल, जितना
ख़ुद को ख़ुद से अलग करना।
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हालातों के मारे ये कल के उजाले हैं।
शिक्षा आजकल दौलत के हवाले हैं।
कैसे पड़ेगा बच्चा, अगर गरीब होगा,
अमीरों को ही तो पढ़ना नसीब होगा,
दिल इस कारोबार में कितने काले हैं।
शिक्षा आजकल दौलत के हवाले हैं।
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मैं तुझे खोना नहीं चाहती,
तू ज़िन्दगी है मेरी…
एक पल के लिए नही,
एक लम्हें के लिए नही…
ज़िन्दगी भर के लिए,
तू ज़िन्दगी है मेरी…
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