चार दिवारी में रहते, चार लोग बेजान है,
शोर होता है फिर भी सब कुछ बड़ा सुनसान है !!
बात कोई करता नहीं सब लड़ने को तैयार है,
कब्र कोई दिखती नहीं पर घर दिखता श्मशान है !!
जब किसी का घर सुलगते हुए,
किसी स्त्री का देह नोंचते हुए,
दुर्बल पर आघात करते हुए,
तुम्हारे हाथों की कंपन से,
देह अग्नि के भाती दहक ना उठे,
तो तुम सिर्फ पत्थर की मूरत हो !!
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एक अजीब सी चल रही ये लहर है,
हर तरफ बिमारी का कहर है !!
अब तो हवा में भी मिल रहा ज़हर है,
मातम में घिर चुका हर शहर है !!
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कब तलक दौड़ता रहूँगा,
बिना मंज़िल हवा की तरह
हर खोखली परंपरा को तार-तार कर,
अंधविश्वासों की किताब,
मैं अब जला डालूँगा !!
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