चाहते हम भी है देना वफ़ा ताउम्र मुहब्बत में तुझको,
पर ये इश्क़ औऱ मुफलिसी कम्बख्त साथ नही रहते !!
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तेरी मेरी जोड़ी, शायर और गजल सी हैं,
कोरा कागज़ हूँ मैं, तू चलती कलम सी हैं !!
कुछ देर सफ़र में हम क्या रुके,
लोग हाथ छुड़ा कर चलने लगे !!
मैंने कहा इन बारिश की बूँदों को
जरा जमकर बरसे प्रियसी की गली में
ऊष्मा से दहकते उनकी गलियों को
अपनी शीतल बूंदों की चादर चढ़ा दे
कि आँगन में उनका नृत्य करना हो
मेरा अबोध भाव से उन्हें देखना हो ।
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चलो बहनो, राखी बांधे,
भारत माँ के लालों को !!
चलो बहनों, तिलक लगाएं,
वतन बचाने वालों को !!
वे सीमा पर अडिग खड़े हैं,
दुश्मन को ललकार रहे हैं !!
हिमालय के हिम शिखरों पर,
आगे बढ़ दहाड़ रहे हैं !!
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उनके सपने, उनके अरमान एक पल में डूब जाते है,
जिनके अपने, जिनके मकान एक पल में डूब जाते है !!
दुनिया में इंसान खुद को ऐसे उठाना चाहता है।
हर एक शख्स यहाँ दूसरे को गिराना चाहता है।
भीतर पल रही नफ़रत की आग मन में, “केशव”
लेकिन मीठी बातों से प्यार दिखाना चाहता हैं।
दृढ़ निश्चय और निरंतर हरेक प्रयास था,
ज़मीं से आसमां जीतना बेहद खास था !!
गिरते-गिरते भी चलना जरूरी हैं।
हर क़दम पर संभलना जरूरी हैं।
माना एक गहरा दरिया हैं ज़िन्दगी,
मगर हर हाल में गुजरना जरूरी हैं।
नम आँखों से भी हँसना जरूरी हैं।
मुसीबतों में रोज फंसना जरूरी हैं।
यहाँ दुनिया में कोई ना देगा खैरात,
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लफ़्ज़ों का स्वाद गर खारा ना हो,
कोई शख़्स यहाँ प्यार का मारा ना हो !!
मृगतृष्णा सा ना हो गर सहारा कोई,
तो भीड़ में कभी दिल बे-चारा ना हो !!