मैंने कहा इन बारिश की बूँदों को
जरा जमकर बरसे प्रियसी की गली में
ऊष्मा से दहकते उनकी गलियों को
अपनी शीतल बूंदों की चादर चढ़ा दे
कि आँगन में उनका नृत्य करना हो
मेरा अबोध भाव से उन्हें देखना हो ।
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दुनिया में इंसान खुद को ऐसे उठाना चाहता है।
हर एक शख्स यहाँ दूसरे को गिराना चाहता है।
भीतर पल रही नफ़रत की आग मन में, “केशव”
लेकिन मीठी बातों से प्यार दिखाना चाहता हैं।