जब किसी का घर सुलगते हुए,
किसी स्त्री का देह नोंचते हुए,
दुर्बल पर आघात करते हुए,
तुम्हारे हाथों की कंपन से,
देह अग्नि के भाती दहक ना उठे,
तो तुम सिर्फ पत्थर की मूरत हो !!
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ख्वाहिश ना कर बहुत कुछ पाने की तू केशव,
तालाब से प्यास बुझा करती हैं, समुंद्रो से नहीं !!
एक अजीब सी चल रही ये लहर है,
हर तरफ बिमारी का कहर है !!
अब तो हवा में भी मिल रहा ज़हर है,
मातम में घिर चुका हर शहर है !!
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अगर दुनिया में रंग काला ना होता,
काजल लगा नयन प्याला ना होता !!
लगाती ना काला टीका माँ माथे मेरे,
तो इतना कभी मैं निराला ना होता !!
कब तलक दौड़ता रहूँगा,
बिना मंज़िल हवा की तरह
हर खोखली परंपरा को तार-तार कर,
अंधविश्वासों की किताब,
मैं अब जला डालूँगा !!
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सफ़ेद झूठ बोले सफ़ेद रंग का पहने कुर्ता,
सफ़ेद कुर्ते की सफ़ेद जेब में काला धन हो रहा है !!
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तलवार व चाकू की क्या है जरूरत,
तुम्हारी तो आँखें ही कातिलाना है !!
कानों में झुमके और होठों पे लाली,
तेरे हुस्न का तो प्रिय हर कोई दिवाना है !!
यह अच्छा है कि
तुम अच्छे हो…
अगर तुम भी अच्छे ना होते,
तो कुछ भी अच्छा ना होता…
मोहब्बत के वादें कब तलक अकेले निभाता चला गया,
दिल की राख से हर दास्ताँ उसकी लिखता चला गया !!
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नमक और मलहम दोनों हैं तुम्हारे पास,
ज़ख्म पर क्या लगाते हों, तुम ही जानो !!
दोस्त बनते हो या दुश्मन, तुम दुनिया के,
अपने और पराए का फर्क, तुम ही जानो !!