मेरी माँ की सूरत फकीरों सी,
जो दे गई लकीरें वाजूदों सी,
मैं कितनी बात लिखूँ उसकी,
लफ्ज़ खत्म हो जाए अमीरी के।
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क़लम मेरी चली कागज़ पर..
शब्दों की वर्णमाला तुम ही हो।
पिरोया जिसे पंक्तियों में..
उन कविताओं की आत्मा तुम ही हो।
मेरे काव्य का आधार..
हर शब्द का बखान तुम ही हो।
तुम्हीं से भाव का स्वर फूटा..
मेरे प्रेम का विश्वास तुम्हीं हो।
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वो छाँव पेड़ की धूप में भी नरमी का एहसास देती है,
जैसे कोई माँ बच्चे को अपने आँचल से ढाँक लेती है !!
मौत के बाद खामोशी पसरी मिली हैं।
रोटियां पटरियों पर बिखरी मिली हैं।
दाम देकर सरकारें निर्दोष हो गई हैं,
गरीब की जान देश में बिकती मिली हैं।
मजदूर को उसके घर पहुंचाना ही पड़ेगा,
चुनाव वाले वादों को निभाना ही पड़ेगा,
देश की रीढ़ की हड्डी है हमारे ये मजदूर,
हर एक की जान को बचाना ही पड़ेगा।
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ना कुछ पाने का लालच,
ना कुछ खोने का डर था !!
सुकून वाले रात दिन वाला,
हमारे बचपन का सफ़र था !!
ना झूठ का बोलबाला था,
ना ही फ़रेब का ज़माना था !!
सबसे मिलते थे हँसकर हम,
रूठने का ना कोई बहाना था !!
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राहें बहुत कठिन मिलेंगी
देख उन्हें घबराना मत।
मंज़िल को पाने से पहले
देखो तुम रुक जाना मत।
अपना सपना ज़िंदा रखना
सपने से ध्यान हटाना मत।
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अँधियारे में उंगली पकड़ कर हमेशा रज़ा देती है,
माथे पर विन्रम स्पर्श से सारे ज़ख्म सुखा देती है !!
नहीं करी कोई हाई स्कूल, स्नातक की पढ़ाई पर,
मेरी माँ अच्छे से मुझको दुनियादारी सिखा देती है !!
चलते-चलते सीधा पथ कब तूर हो गया,
साबूत रह गई रोटी और तन चूर हो गया !!
दिन-रात चल कर तो पहुँच ही जाते मगर,
पता ना चला जन्नत से घर कैसे दूर हो गया !!
मन के खालिपन को भरने को
एक विदा तो लिखती तुम ।।
मेरा था जो वो लेकर चली,
एक मर्म निवेदन
की
रूकती तुम ।।
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लौट आना आसान होता है
उस वक़्त जब कोई
देखता हो राह तुम्हारी और
जलाए रखता हो इक दिया
वापसी की उम्मीद में
तुम्हारे लौट आने की !!
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