ये जो आख़िरी है, वो ही निशान काफ़ी है…
हमारे बदले का सिर्फ, यही हिसाब काफ़ी है !!
क्यो बुलवाते हो गैरों से कि तुम हो…
हमे मारने का, यही ख़िताब काफ़ी है !!
Author Archive for: seervi prakash panwar
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शायरी
शायरी
मेरी माँ की सूरत फकीरों सी,
जो दे गई लकीरें वाजूदों सी,
मैं कितनी बात लिखूँ उसकी,
लफ्ज़ खत्म हो जाए अमीरी के।
…
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मई 12, 2020
8:31 अपराह्न
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शायरी
ये जो चाँद है
उसे तो हर रोज आना है।
कभी काले शीत घघन में चमकना
तो कभी बादलो में धूमिल जाना है।
उसका हर रोज बेदाग सा होकर
प्रियतम सा बन आना है।
तुम चाँद हो मेरे और
तुझे, प्रकाश में मिल जाना है।
मई 1, 2020
9:29 अपराह्न
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ग़ज़ल
वो कलम टूट गया, वो शायर रूठ गया,
अपने ही एक रूप में, एक शायर डूब गया !!
…
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दिसम्बर 1, 2017
4:08 अपराह्न
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