शायरी ये जो आख़िरी है, वो ही निशान काफ़ी है… हमारे बदले का सिर्फ, यही हिसाब काफ़ी है !! क्यो बुलवाते हो गैरों से कि तुम हो… हमे मारने का, यही ख़िताब काफ़ी है !! Read More » जून 16, 2020 6:30 अपराह्न कोई टिप्पणी नहीं
शायरी मेरी माँ की सूरत फकीरों सी, जो दे गई लकीरें वाजूदों सी, मैं कितनी बात लिखूँ उसकी, लफ्ज़ खत्म हो जाए अमीरी के। … पूरी शायरी पढ़ने के लिए क्लिक करे! Read More » मई 12, 2020 8:31 अपराह्न कोई टिप्पणी नहीं
शायरी ये जो चाँद है उसे तो हर रोज आना है। कभी काले शीत घघन में चमकना तो कभी बादलो में धूमिल जाना है। उसका हर रोज बेदाग सा होकर प्रियतम सा बन आना है। तुम चाँद हो मेरे और तुझे, प्रकाश में मिल जाना है। Read More » मई 1, 2020 9:29 अपराह्न कोई टिप्पणी नहीं
ग़ज़ल वो कलम टूट गया, वो शायर रूठ गया, अपने ही एक रूप में, एक शायर डूब गया !! … पूरी गज़ल के लिए क्लिक करे! Read More » दिसम्बर 1, 2017 4:08 अपराह्न कोई टिप्पणी नहीं