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अब क्या बताएँ…
किस कदर निकम्मा किया है इस इश्क़ ने,
रात भर जागते हैं हम,
सुबह उसे सबसे पहले देखने के लिए !!
सुन कपटी कोरोना,
ज़रा बता अपने बारे में !!
…
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ख़्वाइशों की रफ़्तार थोड़ी धीमी करके,
काविशों पर थोड़ा ज़ोर दे ‘नीवो’..
टुकड़ों में बाँट कर ऊँचाई कम न कर,
एक ही पतंग को पूरी डोर दे ‘नीवो’..
राह मुश्किल थी,
पर ऐसा नहीं कि मैं चल ना पाया !!
मंज़िल दूर थी,
बस रास्ते भर दीपक जल ना पाया !!
रोज़ मंज़िल की तलाश में,
न जाने कहाँ-कहाँ पहुँच जाता हूँ !!
लौटता नहीं कभी खाली हाथ,
थोड़ा ज़ख्म, थोड़ा मलहम साथ ख़रोंच लाता हूँ !!
नोंच नोंच सब खा गए,
अब बद से बदत्तर हूँ मैं !!
कर आए शराफत वहीं दफ़न,
अब सम्पूर्ण पत्थर हूँ मैं !!
मुझसे कोई खता हो
तो मुझे बता देना..
औरो की तरह रिश्ता तोड़ने का
बहाना नही चाहिए मुझे !!
आजकल की रिश्तेदारी
कैसी तवायफ हो चली है !!
जिधर देखे पैसा
उधर हो चली है !!
जरूरी नहीं, ग़लतफ़हमियाँ ही कारण बने !
खामखां की जिद्द भी
बहुत अच्छा फ़र्ज़ निभाती है
रिश्तें को बिखेरने में !!