मोम के मानिंद जैसे उम्र पिघल-पिघल जाती हैं,
यादें आइने पर पड़ी धूल-सी धुंधली हो जाती हैं,
यादें, जिंदगी के कुछ किस्से, कुछ कहानी हो गई,
कहें भी तो कैसे ये कहानी तो सदियों पुरानी हो गई,
आज यादों की पुरानी अलमारी खुल गई !!
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तेरी ज़ुल्फें यूँ बिखरी मेरे चेहरे पर,
कि पूरे शहर में बादल उमड़ आए !!
लोग ताकते रह गए अपनी-अपनी छतों पर ,
और ये बारिश की बूँदे मुझे भिगाए !!
लंकेश्वर त्रिलोकपति का जहाँ न टिक पाया हो डेरा,
जब भारतवर्ष के रघुनायक ने उसको रणभूमि में घेरा !!
क्या तेरा वजूद कोरोना, तू तो महज़ मकोड़ा है,
तेरा भी विध्वंस करे जो ऐसा भारत देश है मेरा !!
अनमोल हैं ये मोहब्बत,
इसका कोई दाम नहीं !!
थोड़े फ़िज़ूलखर्च बनो,
ये बनियो का काम नहीं !!
मेरे गम में दुखी,
मेरी खुशी में खुश होते देखा है !!
वो केवल माँ नहीं,
मेरे भाग्य की रेखा है !!
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मरा नहीं हूँ, अभी ज़िन्दा हूँ मैं,
आसमां में उड़ता परिंदा हूँ मैं !!
किसी के जैसा नहीं बनना मुझे,
बहुत ही अलग और चुनिंदा हूँ मैं !!
सच्चे प्यार की अब कोई निशानी नहीं मिलती,
राधा,मीरा जैसी अब कोई दीवानी नहीं मिलती !!
हो गए थे कुर्बान एक दूजे के प्यार में वो केशव,
हीर-रांझे जैसी, देखने को जवानी नहीं मिलती !!
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तूने वादा करके साथ ना निभाया,
उस बात का ना मुझको कोई गिला !!
क्योंकि जीवन के मोड़ पर,
मुझे कोई तुम से बेहतर मिला !!
आज का हर इंसान,
डरा डरा सा है !!
कैद अपने ही घर में,
सहमा सहमा सा है !!
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जान की सलामती ने हमें कैदी बना दिया,
देखकर इंसानों का ये हाल !
ना जाने कितने पंछियों ने अपना
घोंसला जला दिया !!