मैंने कहा इन बारिश की बूँदों को
जरा जमकर बरसे प्रियसी की गली में
ऊष्मा से दहकते उनकी गलियों को
अपनी शीतल बूंदों की चादर चढ़ा दे
कि आँगन में उनका नृत्य करना हो
मेरा अबोध भाव से उन्हें देखना हो ।
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Author Archive for: Aman Jha
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गाँव छोड़ शहर आए कई वर्ष हो गए
एक धुंधली सी याद आज भी
मेरे ज़हन में रह गई है कहीं
बचपन में जब भी
माँ कपड़े या बर्तन धोने बाड़ी में जाती
मैं जल्दी से रसोई घर में घुस जाता
कढ़ाई चढ़ा कर चूल्हे पर मैं रोज
उसे जलाने की कोशिश करने लगता था
पर कुछ ही समय में मुझे यकीन हो चला था
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मैं पढ़ता भी हूँ और पढ़ाता भी हूँ,
सत्ता से सवाल करना सिखाता भी हूँ,
तर्कवादी बने के लिए उकसाता भी हूँ,
सत्ता से संघर्ष ही धर्म हैं बतलाता भी हूँ,
इसलिए मैं देशद्रोही कहलाता हूँ !!
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मैं नहीं मानता इंसानों द्वारा बनाए,
किसी दकियानूसी रीति रिवाज को,
धर्म के नाम पर विभाजित तेरे
इस समाज को,
ना मैं पत्थर पूजू, ना ही कब्र में दफन इंसान को,
नकारता हूँ किसी सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी
इंसान के होने के अस्तित्व को,
जी हाँ मैं नास्तिक हूँ !!
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जब किसी का घर सुलगते हुए,
किसी स्त्री का देह नोंचते हुए,
दुर्बल पर आघात करते हुए,
तुम्हारे हाथों की कंपन से,
देह अग्नि के भाती दहक ना उठे,
तो तुम सिर्फ पत्थर की मूरत हो !!
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कब तलक दौड़ता रहूँगा,
बिना मंज़िल हवा की तरह
हर खोखली परंपरा को तार-तार कर,
अंधविश्वासों की किताब,
मैं अब जला डालूँगा !!
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मोहब्बत के वादें कब तलक अकेले निभाता चला गया,
दिल की राख से हर दास्ताँ उसकी लिखता चला गया !!
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पथ में कांटें हैं, रुकावटें हैं, फिर भी चलो तो सही,
हिम्मत को तलवार बना, एक कदम बढ़ो तो सही !!
डूब रहा है सूरज और देखो अँधेरा घिरने लगा,
बना के मन को रोशनी, अंधेरों से लड़ो तो सही !!
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क़लम मेरी चली कागज़ पर..
शब्दों की वर्णमाला तुम ही हो।
पिरोया जिसे पंक्तियों में..
उन कविताओं की आत्मा तुम ही हो।
मेरे काव्य का आधार..
हर शब्द का बखान तुम ही हो।
तुम्हीं से भाव का स्वर फूटा..
मेरे प्रेम का विश्वास तुम्हीं हो।
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कितनी आसानी से ये वादे तोड़ जाते है,
छोटी छोटी बातों में रिश्ता तोड़ जाते है !!
पल पल में रंग बदलते है यहाँ लोग सारे,
जैसे बदलते हो बदन पर वस्त्र ये सारे !!
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